यशायाह 66:1
यहोवा यों कहता है, आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है; तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?
Thus | כֹּ֚ה | kō | koh |
saith | אָמַ֣ר | ʾāmar | ah-MAHR |
the Lord, | יְהוָ֔ה | yĕhwâ | yeh-VA |
The heaven | הַשָּׁמַ֣יִם | haššāmayim | ha-sha-MA-yeem |
throne, my is | כִּסְאִ֔י | kisʾî | kees-EE |
and the earth | וְהָאָ֖רֶץ | wĕhāʾāreṣ | veh-ha-AH-rets |
is my footstool: | הֲדֹ֣ם | hădōm | huh-DOME |
רַגְלָ֑י | raglāy | rahɡ-LAI | |
where | אֵי | ʾê | ay |
is the house | זֶ֥ה | ze | zeh |
that | בַ֙יִת֙ | bayit | VA-YEET |
ye build | אֲשֶׁ֣ר | ʾăšer | uh-SHER |
where and me? unto | תִּבְנוּ | tibnû | teev-NOO |
is the | לִ֔י | lî | lee |
place | וְאֵי | wĕʾê | veh-A |
of my rest? | זֶ֥ה | ze | zeh |
מָק֖וֹם | māqôm | ma-KOME | |
מְנוּחָתִֽי׃ | mĕnûḥātî | meh-noo-ha-TEE |